Exploring the World of Wheat(गेंहू) Crops: A Comprehensive Guide to Different Wheat Varieties.

आओ गेंहू की अच्छी फसल और गेंहू की सभी प्रजातियों का परिचय जाते है.

Contents hide

विश्व की सभी फासलों में गेंहू एक महत्त्वपूर्ण फसल है।  पूरे विश्व में गेहू का दूसरा स्थान है गेंहू में 9-15% प्रोटीन और 70-72% कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है गेहू का उपयोग रोटी ,डबल रोटी ,बिस्कुट मैदा सूजी और बहुत सी चीजे बनाई जाती है। गेंहू में गुलूटिन आधिक मात्रा में पाई जाती है, इसलिए इसका उपयोग बेकारी के लिए किया जाता है। गेहू के खेती के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम रहती है और म्रतिका दोमट एवं बलुई दोमट में भी अच्छी पैदावार हो सकती है।

गेंहू

गेंहू की उत्पति सबसे पहले कहा हुई थी:

गेंहू की उत्पति दक्षिणी-पश्चमी एशिया में हुई बोनी जातियों की खोज डॉ. नार्मन ई० बोरलांग मक्सिको में 1963 में की थी और 1965 में किसानो को बुवाई के लिए दी गयी थी

सबसे ज्यादा गेंहू किन-किन देशों मे होता है:

पूरे विश्व में सबसे ज्यादा गेहू चीन ,भारत ,सयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, कनाडा, तुर्की, आस्ट्रेलिया मे होता है। और भारत में केरल और नागालैंड को छोड़कर सभी जगह गेहू का उत्पादन किया जाता है उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, में देश का 72.92% गेहू का उत्पादन होता है।  

गेंहू की फसल तैयार करने के लिए तापमान क्या होना चाहिए:   

गेंहू एक शीतोष्ण फसल है, और गेंहू के लिए सबसे अच्छा तापमान  20-22 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छा रहता है।

गेंहू की कौन-कौन सी तरह की प्रजातियां होती है:

1) हैब्रेट जातियां – के०68, के०72, के०78, के०88, के०8070(मगहर), सी०    

 2) देशी जातियां (i) समय से नवम्बर में – पी०बी०डब्लू 502,550, यु०पी०2338,2382 ,एच०डी०2687, डब्लू०एच०542 आदि

(ii) देर से दिसम्बर में –  पी०बी०डब्लू 509,533,590, एच०डी०1021, पूसा गोल्ड, हलना, उन्नत हलना, नैना आदि।                                                        

3) असिंचित जगह के लिए  पी०बी०डब्लू 175, सी०306(सुजाता), के०78, के० 9465,(गोमती), यु०पी० 2338, 2568 आदि।  

4) पहाड़ो के लिए – गिरजा, सैलजा, एच०एस० 86,240,277,295, यु०पी० 1109 आदि।

अच्छी गेंहू की फसल लेने के लिए खेत की तैयारी कैसे करते है:

गेंहू की अच्छी पैदावार पाने के लिए अपने खेत को अच्छे से तैयार करना पड़ता है, अच्छा खेत बनाने के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई कर दे  फिर कल्टीवेटर एवं  देशी हल से 2-3 बार जोताई करनी जरुरी होती है, बुआई करते समय अपने खेत को ढेले रहित होना चाहिए, इस प्रकार जुताई करनी चाहिए की खेत के भूमि की मिट्टी एकदम भुरभुरी तथा खरपतवार रहित हो जाये बुआई से 7 या 10 दिन पहले पलेवा करना चाहिए, तथा कुछ खेतो में कीटो का प्रकोप होता है, तो कीटो से बचाने के लिए अंतिम जुताई के समय 25-30 किग्रा लिंडन धुल प्रति किग्रा की दर से मिला देना चाहिए।   

बुआई एवं बीज की मात्रा:

बुआई की विधिबीज की मात्रा (किग्रा प्रति हेक्टेयर)
  हल के पीछे पंक्तियों में बुआई90-100kg/h
सील-ड्रिल से बुआई80-100kg/h
डिबलिंग विधि से बुआई25-30kg/h
पछेती बुआई125-130kg/h

बुआई का सबसे अच्छा समय किस महीने मे होता है:

गेंहू की बुआई करने का सबसे अच्छा समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक होता है, इस समय के बीच आप बुआई करते है। तो फसल से हमे अच्छी उपज मिलती है। लेकिन आप अगर अक्टूबर में बुआई नहीं कर पाते तो आप 15 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक बुआई कर सकते है, इसमे अक्टूबर में बोई गयी फसलो की अपेक्षा थोड़ा कम उपज प्राप्त होती है।

गेंहू की फसल को तैयार करने के लिए कितनी बार सिचाई करनी चाहिए:

गेहू की अच्छी उपज लेने के लिए 5-6 सिचाई करना चाहिए आवश्यक है।

  • पहली सिचाई 20-25 दिन के अंतर पर कर देनी चाहिए, इस समय फसल की शिखर और जड़ की अवस्था बनना सुरू होती है।
  • दूसरी सिचाई 40-45 दिन के अंतर पर करनी चाहिए जब फसल की कल्ले फूटने की अवस्था होती है समय अपि फसल को टाइम पर पनि डे देना चाहिए।
  • तीसरी सिचाई 60-65 दिन के अंतर पर करनी चाहिए जब फसल कल्ले मे गांठ बनने की अंतिम  अवस्था होती है, इस समय गेंहू फसल को पनि और उर्वरक शक्त जरूरत होती है।  
  • चोथी सिचाई 80-85 दिन के अंतर पर करनी चाहिए जब फसल मे फूल आने की अवस्था होती है, इस समय भी थोड़ा ध्यान देने की आवस्यकता होती है।
  • पांचवी सिचाई 100-105 दिन के अंतर पर करनी चाहिए जब आपकी फसल की बालियों में दाना बनने लगे तब करनी चाहिए।  
  • छठी सिचाई 105-120 दिन के अंतर पर करनी चाहिए जब फसल में दाना पकने लगे

गेंहू की अच्छी फसल तैयार करने के लिए खाद और उर्वरक भी जरूरी होती है।

बुआई से पहले खेत में गोबर की सड़ी खाद 200-250 कुन्तल डालनी चाहिए और उसे मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए, उससे गेंहू की पैदावार बढ़ जाती है। फसल बोने के बाद जहाँ पर पानी की पूरी सुविधा है, वहां पर देशी फसलों को 60 किग्रा नाइट्रोजन, 30 किग्रा फास्फोरस, 30 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की देर से डालना चाहिए। और बोनी जातियाँ के लिए 120 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश प्रतिहेक्टेयरकी देर से डालना चाहिए।

गेंहू के फसल की निराई गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण पर खास ध्यान देना चाहिए:

गेहू में लगने वाले खरपतवार जैसे- गजरी, बथुआ, चटरी-मटरी गेहुंसा या गेहू का मामा जंगली जई आदि। इनको नियंत्रण करने के लिए 1-2 बार हाथों से खुरपी एवं हैण्ड से निराई गुड़ाई करके खरपतवार को कम किया जा सकता है जब खरपतवार ज्यादा हो जाये तब 1किग्रा बेसलीन 1000 लीटर में घोल प्रति हेक्टेयर की दर से 2-3 छिडकाव करना चाहिए, जिससे खरपतवार को खत्म किया जाता है।  

गेहू में लगने वाले रोग एवं उसके उपाय के बारे मे जानते है:

  1. गेरुई-
  2. पीली गेरुई –इसमें गेहू की पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बन जाते है।
  3. भूरी गेरुई– इसमे पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते है जो बाद में काले पड़ जाते पत्तियों बिखरी हुई रहती है।
  4. काली गेरुई– इसका प्रकोप देर से बोई गयी फसलो पर होता है इस रोग में लाल भूरे रंग के उभरे हुए धब्बे बन जाते है।

गेरुई से फसल को बचने के उपाय

  • इंडोफिल M-45 का छिडकाव करना चाहिए तथा बाविस्टिन एवं बीटावैक्स का भी उपयोग किया जाता है।
  •  कंडुआ रोग-

        इस रोग में बालियों में दानों की जगह काला चूर्ण भरा होता है।  यह वायु द्वारा दूसरी बालियों में भी फ़ैल जाता है। यह अच्छा दिखता तो है, उसके बाद भी यह रोगी रहता है।  

उपाय-

  1. बिना रोगी बीज बोना चाहिए
  2. बाविस्टिन एवं बीटावैक्स का 2.5 ग्राम प्रति किग्रा की दर से उपचार करना चाहिए।
  3.  स्पाट ब्लाच-

         इसमें पत्तियों पर भूरे गोल अंडाकार धब्बे बन जाते है। जिससे बालियों में दानो का आकर पतला हो जाता है, इसमें प्रोपीकोना जोल का उपयोग करना चाहिए।

गेहू में लगने वाले कीट एवं उपाय बारे मे जानते है:

  1.  दीमक तथा गुझिया-

ये कीट जमीन के अन्दर रहते है। पोधों की जड़ो को खा जाते है जिसके बाद पोधा नष्ट हो जाता है, इसकी रोक थम के लिए लिन्डेन धुल का प्रयोग किया जाता है।  

  •  तना बेधक-

इसका कीट मोंथा पर अंडे देता है। उससे निकालने वाले कैटरपिलर तनों में घुस कर ताने को खा जाते है, इसमें फालीडोल का प्रयोग करना चाहिए।

  •  चूहा-

यह पोंधे की जड़ो को खा जाता है, भूमि में बिल भी बना देता है। जिससे पोधा गिर कर नष्ट हो जाता है, इनको मारने के लिए बेरियम कार्बोनेट तथा जिंक फास्फाइड की जहरीली गोलियों का भी उपयोग किया जाता है।  

उपज –

बोनी जातियों के गेंहू की फसल से 40-50 कुन्तल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है।  

देशी और लम्बी जातियों के गेंहू से 25-30 कुन्तल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है।

Leave a Comment